स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय और विवेकानंद जी की 10 रोचक बातें

स्वामी विवेकानंद‘ शायद ही कोई हो इस वक़्त इस भारतवर्ष में जिसने स्वामी विवेकानंद जी का नाम न सुना हो। इनका नाम न सिर्फ भारत में ही अपितु विदेशो में भी बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। और तो और पूरी दुनिया उनके गुणों का बखान करती है। आईये पढ़ते हैं स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय और विवेकानंद जी की 10 रोचक बातें

  • नाम – स्वामी विवेकानंद
  • जन्म तिथि- 12 जनवरी 1863
  • जन्म स्थान- कोलकाता
  • पिता का नाम- विश्वनाथ दत्त
  • माता का नाम- भुनेश्वरी देवी
  • शिक्षा- कला, इतिहास, साहित्य दर्शन
  • प्रसिद्धी का कारण- शिकागो भाषण और भारत के नाम को बढाने में अनन्य योगदान
  • गुरूजी- श्री रामकृष्ण परमहंस
  • मृत्यु- 4 जुलाई 1902


आप पढेंगे कैसे उन्होंने एक छोटे से परिवार से जुड़े रहकर भी इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की और साथ ही साथ भारत देश का नाम भी ऊँचा किया।

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन संघर्ष


बात उन दिनों की है जब शायद ही कोई अच्छे से पढ़ा लिखा होता था। थोडा पढ़ा लिखा होना भी उस वक़्त बहुत बड़ी बात थी। उस समय में इस अज्ञानरूपी अन्धकार में डूबे इस संसार को ज्ञान के सूरज से किसी ने प्रकाशमान किया तो वो स्वामी विवेकानंद जी ही थे।


जब विवेकानंद जी अपनी माँ के गर्भ में थे। तब उनकी माँ को सपना आया था। जिसमे शंकर भगवान खुद आये और कहने लगे की वो उनके घर में उनके पुत्र के रूप में जन्म लेने वाले हैं। स्वामी जी की माँ काफी खुश हुईं।


और आखिरकार वो दिन आ ही गया जब स्वामी विवेकानंद जी का जन्म हुआ। 12 जनवरी 1863 की शाम विश्वनाथ दत्त जी के लिए वैसी ही नहीं थी जैसी हर शाम होती थी। वो शाम बहुत ही शांत और ख़ुशी से भरी थी। लेकिन इस शांति में सिर्फ एक शोर काफी तेज़ था। वो आवाज थी स्वामी विवेकनद जी के रोने की। स्वामी विवेकानंद जी का जन्म राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म कोलकाता में हुआ था। आज विश्वनाथ दत्त जी पिता बन गए थे। वो काफी खुश थे। हाँ लेकिन किसने सोचा था की ये एक साधारण सा दिखने वाला लड़का आगे चलकर दुनिया की तस्वीर ही बदल कर रख देगा।

स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम वीरेश्वर था। घर में इनको इसी नाम से बुलाया जाता था। लेकिन इनके लिखित और विद्यालय का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट में बहुत बड़े वकील थे। साथ ही साथ इनकी रूचि आध्यात्म में भी काफी थी।

आप बचपन से सुनते आते होंगे की लोग आस-पास के लोगो को जैसा देखते हैं वैसे ही बन जाते हैं। तो इनके मन में भी सन्यास का भाव ऐसे ही नहीं आया था।
स्वामी विवेकानंद जी के दादाजी जब सिर्फ 25 वर्ष की आयु के थे तो उन्होंने सन्यास ले लिया था। और इसी बात से स्वामीजी भी काफी प्रेरित हुए।

स्वामी विवेकानंद जी की माता जी का नाम श्रीमती भुनेश्वरी देवी था। वो भी काफी आध्यात्मिक थी और दिन भर भगवान के नाम में व्यस्त रहती थीं। वो अपने आराध्य शिवजी की पूजा किया करती थीं।

कहते हैं न की जैसे माता पिता वैसे बच्चा। और यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ।स्वामी विवेकानंद जी ने अपने माता पिता की भगवान के प्रति ऐसी निष्ठा देखी तो उनका मन भी ऐसे कामो में लगने लगा। और वो भी अपना ज्यादातर समय भगवान के ध्यान में व्यतीत करने लगे।

स्वामी विवेकानंद जी का बाल्यकाल


वो बचपन से ही काफी नटखट और शरारती स्वाभाव के थे। वो अपनी शरारत से अपने मित्रो को परेशान किया ही करते थे। साथ ही साथ वो अपने अध्यापको को भी परेशान करने का कोई भी मौका छोड़ते नहीं थे।

शरारती होने के साथ ही साथ वो काफी बुद्धिमान और पढने में तेज़ थे। वो उस पढाई को कुछ ही घंटो में पूरा कर लिया करते थे जो पढाई करने में लोगो को महीनो लग जाते थे। स्वामी विवेकानंद जी के इस गुण को देख कर अध्यापक बहुत अचंभित हो जाते थे।


उनका दिमाग इतना तेज़ था की एक बार बताई बात को वो नहीं भूलते थे। कभी कभी वो अपने माता पिता या अध्यापक से ऐसे प्रश्न पूछ लेते थे, जिसका जवाब कोई नहीं दे पता था।


जब स्वामी विवेकानंद जी मात्र 21 साल के थे तभी 1884 में उनके पिताजी की मृत्यु हो गयी। और पूरे घर का कारभार उन्ही पर आ गया। आगे जाकर उनकी मुलाकात रामकृष्ण परमहंस जी से हुई। जिसके बाद उन्होंने सन्यास ले लिया और उनका नाम विवेकानंद हो गया।


स्वामी विवेकानंद जी के बारे में रोचक बातें

  1. स्वामी विवेकानंद जी के परिवार के लोग स्वामी जी का नाम दुर्गादास रखना चाहते थे, लेकिन उनका नाम नरेन्द्र रखा गया।
  2. स्वामी विवेकानंद जी हर विषय में अव्वल थे, लेकिन उनके अंग्रेजी में अंक 50 प्रतिशत के लगभग ही रहते थे।
  3. स्वामी जी गुस्सा होने पर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते थे जो की उनकी माताजी ने बताया था।
  4. स्वामी जी जानवारो से भी काफी प्रेम रखते थे और उन्होंने काफी जानवर भी पाल रखे थे।
  5. स्वामी विवेकानंद जी को चाय बहुत पसंद थी। एक बार उन्होंने बाल गंगाधर तिलक जी से चाय बनवा कर पी थी।
  6. स्वामी विवेकानंद जी को जीवनकाल में 31 बीमारियाँ हुई थीं।
  7. स्वामी विवेकानंद जी युवा लोगो को देश को आगे बढाने की लिए प्रेरित करते थे। इसीलिए उनका जन्मदिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  8. स्वामी विवेकानंद जी के जीवन में बुरे दिन आने पर उन्होंने ये कहना शुरू कर दिया था की इस धरा पर भगवान हैं ही नहीं।
  9. स्वामी विवेकानंद जी पहले ही लोगो से कहा करते थे की उनका जीवन 40 वर्ष से ज्यादा का नहीं है।
  10. स्वामी विवेकानंद जी के मठ में किसी भी महिला का आना वर्जित था। यहाँ तक की स्वामी जी की माता जी को भी।

स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा


उस वक़्त में बच्चो की पढाई काफी देर से शुरू होती थी। जैसे नए फूल पर भौरों का आना ज़रूरी है, जिससे महक फैल सके। वैसे ही मानव के जीवन में शिक्षा का आना भी ज़रूरी है। जिससे वो उसका ज्ञान बढ़ सके और वो खुद भी ज्ञान का प्रकाश फैला सके।


जैसा ज्ञान का प्रकाश स्वामी विवेकानंद जी ने फैलाया है शायद ही कोई दूसरा होगा जिसने ऐसा किया हो। इनकी विद्यालय की पढाई 8 वर्ष की उम्र में 1871 में शुरू हुई। जब इनका दाखिला ईश्वरचंद विद्यासागर के मेट्रोपोलियन संस्थान में हुआ।

इनकी जिंदगी भी इतनी आसन नहीं थी। 1877 में ये अपने परिवार के साथ रायपुर चले गए। इनकी आगे की पढाई यहीं हुई। सन 1879 में जब इनका परिवार वापस कलकत्ता आया तो उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीज़न प्राप्त किया।

इनके प्रिय विषय इतिहास, सामाजिक विज्ञान और कला थे। साथ ही साथ इन्हें संगीत का भी काफी शौक था। स्वामी विवेकानंद जी की हिन्दू धार्मिक ग्रंथो में काफी रूचि थी।

उन्होंने कम समय में ही रामायण, महाभारत, उपनिषद और वेदों का ज्ञान ले लिया था। वो न सिर्फ इन बातो को पढ़ते थे, अपितु अपनी जिंदगी में उसका प्रयोग भी करते थे। धीरे धीरे इनकी पढाई आगे बढ़ी और सन 1884 में इन्होने कला से स्नातक की पढाई पूरी की।


स्वामी विवेकानंद जी पर ब्रम्हा समाज का प्रभाव


स्वामी विवेकानंद जी के ऊपर ब्रम्हा समाज का काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। और शायद यही एक मुख्य वजह थी जिसने स्वामी विवेकानंद जी के जीवन को बदल कर रख दिया। ये ब्रम्हा समाज के केशव चन्द्र सेन जी से काफी प्रभावित थे।

केशव जी ही स्वामी विवेकानंद जी के लिए ब्रम्हा समाज से प्रभावित होने का मुख्य कारण थे। 1881 से 1884 तक स्वामी विवेकानंद जी ने लोगो को ध्रूमपान और शराब की लत को छुडाने में काफी मदद की। स्वामी विवेकानंद जी ने लोगो को ऐसी गन्दी आदतों से दूर रहने के लिए काफी प्रेरित किया।

लोग इनकी बातों को काफी ध्यान से सुनते थे। शायद उसी वक़्त उनके तेज़ और गौरव का अंदाज़ा लग गया था। जैसे उगते सूरज को देखकर ही उसके तेज़ को बता दिया जाता है। शायद उसी तरह लोग ये समझ गए थे की स्वामी विवेकानंद जी भी आगे चलकर बहुत ही महान बनने वाले हैं।


स्वामी विवेकानंद जी पश्चिमी सभ्यता की उन सभी बातों का खुलकर विरोध करते थे जो अच्छी नहीं थीं। शराब भी उनमे से एक थी। वो लोगो को ये बात बताते थे की अपना देश कितना अच्छा है और अपने देश का संस्कार कितना अच्छा है।

वो लोगो को भारत के पुराने गौरव के बारे में बताया करते थे। साथ ही साथ वो लोगो को उपनिषदों, वेदों और ग्रंथो का ज्ञान भी दिया करते थे।


स्वामी विवेकानंद जी ब्रम्हा समाज की किसी बात से सबसे ज्यादा प्रभावित थे, तो वो थी निराकार भगवान में विश्वास और मूर्ति पूजा का विरोध करना। जिसमे ये भी बताया गया था की हिन्दू धर्म में लिखे उपनिषद और ग्रन्थ विश्व के सबसे अधिक ज्ञान देने वाले और अच्छे साथी हैं। जिनका दुनिया के सभी लोगो को पता चलना चाहिए।


स्वामी विवेेकानंंद द्वारा गुरु की सेवा


वो अपने गुरु की बहुत इज्जत करते थे साथ ही साथ वो अपने गुरु के दिए गए हर कार्य को करते थे और उनकी हर बात का पालन करते थे। शायद यह एक वजह थी जिससे उन्हें अपने गुरु से काफी कुछ सीखने को मिला। शायद वो अपने गुरु से इसी वजह से वो सब सिख पाए जो और लोग नहीं सिख पाए।

वो गुरुजी के लिए कोई भी काम करने में घृणा नहीं करते थे न ही उन्हें कभी बुरा लगता था। यहाँ तक यदि उनके गुरु बीमार होते थे तो वो उनके बिस्तर के पास से कफ, गंदगी आदि को उठा कर फेंकते थे। कोई इन सब वजहों से किसी से घृणा करे ये उन्हें कदापि नहीं पसंद था।

एक बार एक शिष्य ने ऐसा किया था, तो उन्होंने बहुत ही अच्छे से उसको समझाया था की ऐसी भावना नहीं रखनी चाहिए, और लोगो के साथ प्रेम से रहना चाहिए।

वो रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरु मानते थे। जब उनके गुरु की तबियत नाजुक थी, तो स्वामी विवेकानंद जी ने अपने घर का ख्याल किये बिना उनकी सेवा की। हमेशा उनके पास ही रहते थे। और तो और उन्हें खुद के खाने पीने की सुध नहीं रहती थी।

इसके फलस्वरूप उनके गुरु जी स्वामी विवेकानंद जी को ऐसी ज्ञान की बातें बताते थे, जो उन्होंने कभी किसी को नहीं बताई थी।


स्वामी विवेकानंद जी ये चाहते थे की लोग आपस में भेदभाव न रखें और न ही घृणा का भाव रखें। सब के सब प्रेम भाव से एक साथ रहें। वो लोगो के जातिवाद को बिलकुल भी नहीं पसंद करते थे। और चाहते थे की और लोग भी इस बात का पालन करें।


स्वामी विवेेकानंंद जी का शिकागो का सफ़र


जब उम्र थी एक नए जीवन की शुरुआत करने की। परिवार को संभालने की। तो उन्होंने एक बहुत बड़ा निर्णय लिया। उन्होंने मात्र 25 वर्ष की उम्र में पारिवारिक जीवन का त्याग कर दिया। और साधू वेश धारण कर लिया।

साधु वेश धारण करने के बाद इनका जीवन कठिनाइयों से भर गया और बहुत ही व्यस्त जीवन हो गया। इनके ऊपर विश्व में ज्ञान के प्रकाश को फैलाने की जिम्मेदारी आ गयी। इन्होने अपने गुरु का अनुसरण करते हुए इस काम को बहुत ही अच्छे से किया।


कुछ समय बाद वो समय आ गया, जिसने इनके जीवन को बदल कर रख दिया। वो था शिकागो का भाषण। स्वामी विवेकानंद जी ने शिकागो के लिए सफ़र 31 मई 1893 को शुरू हुआ।

उनकी ये यात्रा सीधे शिकागो के लिए नहीं थी। वो सीधे शिकागो नहीं गए। वो पहले जापान गए फिर चीन और कनाडा। वहां उन्होंने लोगो को हिन्दू धर्म की और भारत के संस्कृति के बारे में बताया। और काफी दिन वहां रहने के बाद वो वहां से अमेरिका के लिए रवाना हो गए।


1893 में शिकागो में विश्व धर्म परिषद् का सम्मलेन था। जहाँ दुनिया के सभी देशो से लोग आये थे। जो अपने धर्म के बारे में और अपनी संस्कृति के बारे में परिचित कराते। स्वामी विवेकानंद जी भी भारत का प्रधिनित्व करने गए। जहाँ वो हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के बारे में लोग को परिचित कराने वाले थे।

ये बात उस वक़्त की है, जब भारत के लोगो को अनपढ़ समझा जाता था और उन्हें घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। साथ ही साथ उन्हें बराबरी का सम्मान भी नहीं दिया जाता था।


यही वजह थी की यूरोप और अमेरिका के लोग नहीं चाहते थे की स्वामी विवेकानंद जी भाषण दें। उन्होंने इसके लिए काफी प्रयास भी किया। लेकिन अमेरिका के एक प्रोफेसर की सहायता से स्वामी विवेकानंद जी को बहुत कम समय के लिए भाषण देने का समय मिल ही गया।

वो कहते हैं न सौ सुनार की और एक लुहार की। हुआ भी कुछ ऐसा ही। लोगो को स्वामी विवेकानंद जी का भाषण बहुत ही ज्यादा पसंद आया। और जो लोग स्वामी विवेकानंद जी के विरोधी थे वो अपना सा मुह लेकर रह गए।


उनके भाषण ने अमेरिका के लोगो में स्वामी जी के लिए इज्जत बढ़ा दी, और वो उनके भक्त हो गए। स्वामी विवेकानंद जी वहां पर 3 साल तक रहे और ज्ञान का प्रसार करते रहे।

वो लोगो को भारत के बारे में और संस्कृति के बारे में बताते रहे। और साथ ही साथ वो लोगो को काफी ज्ञान की बातें बताया करते थे। जो बातें शायद ही कोई जानता था।

इस घटना ने न सिर्फ स्वामी विवेकानंद जी का नाम प्रकाश में लाया साथ ही साथ भारत का नाम भी ऊँचा किया। और लोगो को पता चला की भारत के लोग कितने ज्ञानी हैं।


अमेरिका की मीडिया भी स्वामी विवेकानंद जी की तारीफ़ करते नहीं थकती थी। उन्होंने स्वामी जी का नाम तूफानी हिन्दू ( साइक्लोनिक हिन्दू) रखा था। और उन्हें इसी नाम से बुलाते थे। इस नाम के पीछे का कारण था की जैसे तूफ़ान तेज़ी से बढ़ता है वैसे ही स्वामी विवेकानंद जी का नाम भी बढ़ रहा था।


स्वामी विवेकानंद जी ने लोगो को बताया की भारत की संस्कृति ऐसी है। अगर दुनिया भारत की संस्कृति को नहीं समझ पायेगा तो उनका जीवन वैसा ही होगा जैसा माँ बाप के बिना बच्चे का होता है। इसलिए भारत की संस्कृति को जानना बहुत ज़रूरी है।


वहां 3 साल रहने के साथ ही साथ उन्होंने वहां रामकृष्ण मिशन की ढेर सारी शाखाएं खोलीं। और अमेरिका के लोगो ने प्रभावित होकर उस मिशन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा भी लिया। स्वामी विवेकानंद जी का ही ये प्रयास था जिसकी वजह से भारत का नाम पूरी दुनिया में फैल सका। और भारत की इतनी इज्जत बढ़ी।


जिसने भी स्वामी विवेकानंद जी के बारे में पढ़ा है। जानते हैं की उनका जीवनकाल कितना छोटा था। वो मात्र 39 साल की उम्र में ही स्वर्ग को प्राप्त हुए थे। लेकिन उन्होंने जो कार्य 39 साल के उम्र में किया। वो शायद कोई और सदियों जीवित रहकर भी नहीं कर पाता।

स्वामी विवेकानंद जी की देंन

शायद इस बात का वर्णन शब्दों में कर पाना मुश्किल है की स्वामी विवेकानंद जी ने हमे क्या दिया। क्योंकि जो उन्होंने दिया वो अब कोई और नहीं दे सकता।

जो उन्होंने किया वो एक साधारण मानव के लिए कर पाना नामुमकिन सा लगता है। शायद इसीलिए उनको भगवान का रूप माना जाता है।


एक घटना के बारे में बताया जाता है। एक बार वो कहीं गए हुए थे और उन्हें देखकर एक आदमी ने चिल्लाकर कर कहा शिवजी शिवजी।


उनके योगदानो की बात करें तो सबसे मुख्य है की उन्होंने पूरे विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाया। उन्होंने पूरी दुनिया को बताया की भारत की संस्कृति कितनी अच्छी है और हिन्दू धर्म के ग्रंथो में कितना ज्ञान भरा है। उन्होंने भारत का नाम पूरे विश्व में प्रसिद्ध किया।


उन्होंने भारत में लोगो को ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया और लोगो को इसका महत्त्व बताया।


स्वामी विवेकानंद जी के बारे में बताया जाता है की अगर आप भारत को जानना चाहते हैं, तो स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए। आप भारत को अच्छे से समझ जायेंगे।


इस बात से ही पता चलता है की स्वामी विवेकानंद जी ने क्या किया है। उनको इतना महत्त्व दिया गया की उनको सम्पूर्ण भारत ही कह दिया गया।


जब भारत को आज़ादी दिलाने के लिए महात्मा गाँधी जी ने देश को एक साथ आने को कहा, तो पूरा भारत साथ आया। इस घटना के पीछे का कारण भी स्वामी विवेकानंद जी ही थे। उन्होंने गांधीजी के पहले ही भारत के सभी लोगो को एक साथ लाने के लिए आह्वान किया था। और पूरा भारत एक साथ आया भी।


स्वामी विवेकानंद जी ने भारत को आजाद कराने के लिए भी काफी कार्य किये। प्रारंभ में वो देश को आज़ाद कराने के लिए हिंसक रूप लेने को भी तैयार थे। लेकिन जल्दी ही उन्हें एहसास हुआ की इस काम के लिए वो पूरी तरह तैयार नहीं हैं। उन्होंने इस बात को ध्यान में रखते हुए देश को एक साथ लाने के लिए ‘एकला चलो’ नीति का पालन किया।


उनका कहना था की भारत देश में वो सब कुछ है जो एक देश में होना चाहिए। बस उसको अच्छे से संजोना ज़रूरी है। उन्होंनेे लोगो को बताया की पश्चिम के देशो को भारत के ज्ञान की ज़रुरत है। और ऐसा करके हम अपने देश का नाम ऊँचा कर सकते हैं।


स्वामी विवेकानंद जी को स्वर्ग की प्राप्ति


कहते हैं कि भगवान के घर भी अच्छे लोगो की कमी होती है। इसलिए वो अच्छे लोगो को अपने पास बहुत जल्दी बुला लेते हैं।


स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु का कारण सच में एक आश्चर्य की बात है। उन्होंने अपनी सांस रोककर खुद को परमात्मा में विलीन कर लिया था। लेकिन विज्ञान कहता है की सांस रोक कर मरना असंभव है।


अपने आखिरी दिन उन्होंने कहा था। मुझे समझने के लिए एक और विवेकानंद को पैदा होना पड़ेगा। शायद आज तक कोई और उनसा हुआ नहीं और न कभी होगा।

आखिरी दिन 4 जुलाई 1902 को उन्होंने समाधी ली और दो घंटे की समाधी के बाद वहीँ पर खुद की सांस रोक ली। मात्र 39 वर्ष की उम्र में उन्होंने खुद को परमात्मा में विलीन कर लिया।

उनके शिष्यों ने उनका अंतिम संस्कार बैलूर में गंगा नदी के किनारे किया। और वहीँ पर उनकी याद में एक मंदिर बनवाया। उनके शिष्यों ने स्वामी विवेकानंद जी का अनुसरण करते हुए रामकृष्ण मिशन को और आगे बढाया।


स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा प्रणाली के प्रति सोच


स्वामी विवेकानंद जी लार्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली के विरोधी थे। वो अंग्रेजो की शिक्षा को बहुत ही बेकार मानते थे।

उनका कहना था की कुछ परीक्षाओं को उतीर्ण कर लेने से वो शिक्षित नहीं हो जाता। अंग्रेजी शिक्षा सिर्फ लोगो को पैसा कमाना सिखाती है।

शिक्षा ऐसी होनी चाहिए की उसमे लोगो को जिंदगी में आने वाले कष्टों को झेलना और आने वाले मुसीबतों से लड़ना सिखाया गया हो। लोगो को आत्मनिर्भर होना सिखाया जाए। लड़का लड़की में बिना कोई भेद किये सबको समान शिक्षा दी जाए।


स्वामी विवेकानंद जी का मानना था की शिक्षा वही है- जिससे व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति को वश में करना सीखे। स्वामी विवेकानंद जी का कहना था की किसी देश का विकास करने के लिए लोगो का शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है।

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