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मदन लाल ढींगरा जी का जन्म 18 सितम्बर 1883 को हुआ था। मदन लाल ढींगरा एक क्रान्तिकारी थे। मदन लाल ढींगरा ने इंग्लैंड में पढाई करते समय ही वहां के एक ऑफिसर को मार दिया था।
उस ऑफिसर का नाम William Hutt Curzon Wyllie था। मदन लाल ढींगरा इसी वजह से प्रसिद्ध हुए। उन्हें इस घटना के बाद मृत्युदंड की सजा दी गयी थी, जो उन्होंने हँसते हँसते स्वीकार कर ली। आइये पढ़ते हैं मदन लाल ढींगरा की जीवनी (madan lal dhingra biography)
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मदन लाल ढींगरा के जीवन का बचपन
मदन लाल ढींगरा जी का जन्म एक अमीर खानदान में हुआ था। इनके पिताजी शहर के बहुत प्रसिद्ध सर्जन डॉक्टर थे। मदन लाल ढींगरा जी का जन्म 18 सितम्बर 1883 को भारत के अमृतसर में हुआ था।
मदन लाल ढींगरा एक अच्छे और पढ़े लिखे परिवार से जुड़े थे। ये एक हिन्दू पंजाबी खत्री परिवार से थे। मदन लाल ढींगरा कुल 8 भाई बहन थे (जिनमे 7 लड़के और एक लड़की थी।)
ये काफी अमीर परिवार से आते थे और ये ब्रिटिश के काफी वफादार थे।
एक अच्छे और अमीर खानदान से जुड़े हुए होने की वजह से सभी भाइयों की पढाई देश के बाहर हुई थी। मदन लाल ढींगरा की भी पढाई इंग्लैंड से हुई थी।
लेकिन कहते हैं न की कोई कहीं भी चला जाए दिल हमेशा अपने मातभूमि से जुड़ा रहता है। इनके साथ भी ऐसा ही हुआ।
चाहो इनकी पढाई इंग्लैंड में चल रही थी लेकिन देश के लिए प्रेम कभी कम नहीं हुआ और यही वजह थी की ये हँसते हँसते मरने को भी तैयार हो गए।

मदन लाल ढींगरा जी की प्रारंभिक पढाई अमृतसर में ही हुई थी। सन 1900 तक अमृतसर के MB Intermediate College में पढने के बाद आगे की पढाई के लिए लाहौर चले गए।
लाहौर में इनका दाखिला गवर्नमेंट कॉलेज यूनिवर्सिटी में हुआ। मदन लाल ढींगरा में क्रांति की चिंगारी यहीं पर लगी। इसका कारण ये था की वहां पर आज़ादी के लिए बहुत सारे आन्दोलन चल रहे थे।
आंदोलनों के साथ साथ इनका ध्यान भारत की गरीबी पर गया। वो भारत की गरीबी को दूर करने के विचार से बुरी तरह से ग्रसित हो गए। उन्होंने ‘भारत में गरीबी का कारण’ पर आगे की पढाई शुरू कर दी।
काफी पढाई के बाद इनको आखिरकार इस समस्या का समाधान मिल गया। सबसे पहले इन्होने पता किया भारत में गरीबी का मुख्य कारण क्या है? मदन लाल ढींगरा जी को यहाँ ये बात पता चली की भारत में दूसरे का शासन होने की वजह से ही इतनी गरीबी है।
इस समस्या का समाधान था स्वदेशी आन्दोलन, मदन लाल ढींगरा स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े और पढाई से ज्यादा ध्यान देश की सेवा में लगाने लगे।
स्वदेशी आन्दोलन का साफ़ सा लक्ष्य था की अपने देश में अपने देशवासियों के द्वारा बनायीं गयी वस्तुओ का उपयोग करना और ब्रिटिश सरकार द्वारा बाहर से मंगाई गयी वस्तुओं का बहिष्कार करना।
मदन लाल ढींगरा को बहुत अच्छे से समझ आ गया था की ब्रिटेन सरकार ने इस तरह के नियम बनाये थे जिससे भारत के कारखाने और कारीगर बेकार हो जायें। और लोग ब्रिटेन में बनी वस्तुओं को खरीदने के लिए मजबूर हो जाएँ।
यही एक मुख्य कारण था की भारत में गरीबी कम नहीं हो रही थी, और भारत आर्थिक तरक्की नहीं कर पा रहा था।
जब ये परस्नातक में थे, तो उन्होंने अपने कॉलेज के प्रिंसिपल के खिलाफ आन्दोलन कर दिया था। इस आन्दोलन की शुरुआत मदन लाल ढींगरा ने ही की थी।
इसका कारण था की प्रिंसिपल का आदेश था की कॉलेज में सिर्फ ब्रिटेन के कपडे से बने ब्लेजर पहनने होंगे। इस आन्दोलन की वजह से मदन लाल ढींगरा जी को कॉलेज से निकाल दिया गया था।
इनके पिता जी की सरकारी नौकरी थी और ये झगड़ो से बहुत दूर रहते थे। उनके पिताजी का कहना था की तुम कॉलेज से माफ़ी मांग लो और वादा करो की कभी फिर ऐसे कामो में सम्मिलित नहीं होगे।
मदन लाल ढींगरा जी ने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया। इनको पता था की घर गया तो पिताजी इस विषय पर बात करेंगे और मदन लाल जी इस बारे में कोई भी बात नहीं करना चाहते थे।
यह एक कारण था की मदन लाल ढींगरा जी घर गए ही नहीं। उन्होंने नौकरी ले ली और जीवन को अपने तरीके से जीने का निर्णय किया।
मदन लाल ढींगरा को जल्द ही एक तांगा चालने वाली कंपनी में क्लर्क की नौकरी लग गयी। इनकी कंपनी अंग्रेजो के परिवारों को शिमला घुमाती थी।
मदन लाल ढींगरा जी को शुरू से ही अंग्रेजो से नफरत हो गयी थी, इसलिए यह काम इनको ज्यादा रास नहीं आया।
बहुत बार ऐसा हुआ की इन्होने बड़े लोगो की आज्ञा का पालन नहीं किया। इस वजह से कुछ समय के बाद इनको निकाल दिया गया।
वहां से निकलने के बाद इन्होने एक कारखाने में मजदूर की नौकरी करना शुरू कर दिया। उनका देशप्रेम यहाँ भी नहीं गया।
उन्होंने कारखाने में एक समूह बनाने का प्रयास करना शुरू कर दिया। जब ये बाद बड़े पद वालो को पता चली तो उन्होंने इन्हें नौकरी से निकाल दिया।
इस नौकरी से निकलने के बाद वो कुछ समय के लिए मुंबई चले गए। वहां भी उनको कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली।
इधर घर न जाने और ऐसे छोटी नौकरी करने की वजह से उनके घर वाले चिंतित हो गए।
मदन लाल ढींगरा जी के बड़े भाई डॉक्टर बिहारी लाल जी ने इनको ब्रिटेन जाकर आगे की पढाई करने को कहा।
कुछ समय के बाद मदन लाल ढींगरा जी ब्रिटेन जाकर आगे की पढाई करने के लिए तैयार हो गए। सन 1906 में वो ब्रिटेन चले गए और वहां पर यूनिवर्सिटी कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढाई शुरू कर दी।
मदन लाल ढींगरा जी वीर सावरकर के साथ
ब्रिटेन जाने के बाद वहां उनकी मुलाक़ात बिनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्णा वर्मा से हो गयी।
मदन लाल ढींगरा के ब्रिटेन जाने के एक साल पहले ही लन्दन में श्यामजी कृष्णा वर्मा ने इंडिया हाउस का निर्माण कराया था। यह वो जगह थी जहाँ पर भारतीय क्रान्तिकारी लोग मिलते थे।
मदन लाल ढींगरा जी की मुलाक़ात यहीं पर सावरकर और श्यामजी से हुई। ये दोनों लोग ही मदन लाल ढींगरा के मातृप्रेम से बहुत प्रभावित थे और इसके मदन लाल को बहुत प्रेरित करते थे।
शायद ये प्रेरणा ही थी जिसने आगे चलकर उनसे हत्या करवा दी।
मदन लाल जी कुछ समय के लिए गोली चलाना सीखने चले गए और इंडिया हाउस से बहुत दूर हो गए। ये लेकिन ज्यादा दिन भारतीये क्रांतिकारियों से दूर नहीं रह पाए और जल्द ही एक गुप्त समूह में शामिल हो गए।
इस समूह का नाम अभिनव भारत मंडल था, जिसके निर्माता सावरकर और उनके भाई गणेश थे।
इस सब के बीच ही 1905 का बंगाल विभाजन हुआ, जिससे सावरकर जी, ढींगरा जी और बाकी क्रान्तिकारी छात्र टूट गए।
मदन लाल ढींगरा के लिए तो ये समय और ज्यादा ख़राब तब हो गया, जब उनके पिता ने ही उनके इन राजनैतिक कामो के लिए काफी कुछ सुनाया।
उनका सुनाना यहाँ ही नहीं रुका, और उन्होंने अखबार में भी अपने निर्णय को छपवा दिया। उनके पिता दित्ता मल्ल उस वक़्त अमृतसर के चीफ मेडिकल ऑफिसर थे।
मदन लाल ढींगरा ,William Hutt Curzon Wyllie के हत्या की तैयारी में

मदन लाल ढींगरा द्वारा Curzon Wyllie की हत्या
ऐसा नहीं था की मदन लाल ढींगरा जी का उद्देश्य Curzon Wyllie को मारना था। Curzon Wyllie को मारने से पहले उन्होंने Lord Curzon को मारने का प्रयास किया था। जो की भारत के वायसराय रह चुके थे।
और तो और उन्होंने पूर्वी बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर – Bampfylde Fuller को मारने का भी प्रयास किया था। इन दोनों ही प्रयासों में वो सफल नहीं हो पाए थे।
इसके बाद ही इन्होने Curzon Wyllie को मारने का निर्णय लिया। Curzon Wyllie ब्रिटेन के आर्मी में थे और कुछ समय बाद भारतीय राजनीती का हिस्सा बन गए।
Curzon Wyllie ने भारतीय जनता पर काफी अत्याचार किया था। जिसका उनको फल मिला और ब्रिटेन सरकार ने हमेशा उनकी पद्दोनात्ति की।
1901 में ये भारत के सेक्रेटरी के प्रमुख असिस्टेंट बनाये गए। ये साथ ही साथ गुप्त सूचना प्राप्त करने वाले समूह के प्रमुख थे।
ये उस वक़्त मदन लाल ढींगरा और उनके साथियों के बारे में गुप्त सूचना इक्कठा कर रहे थे। इस लिए वो मदन लाल जी के पिता जी के काफी करीबी दोस्त बनकर सूचना प्राप्त कर रहे थे।
1 जुलाई 1909 में एक कार्यक्रम का आयोजन Imperial Institute पर हुआ। इसमें काफी भारतीय और विदेशी लोग भी आये थे।
जब Curzon Wyllie इस आयोजन के बाद अपने परिवार के साथ निकल रहे थे, तभी मदन लाल ढींगरा जी ने उनको पांच गोलियां मार दी जिससे उनकी वहीँ तुरंत मृत्यु हो गयी।
इस बीच बचाव में lalkaka (जो की एक पारसी डॉक्टर थे ) को भी दो गोली लग गयी, और उनकी भी वहीँ मौत हो गयी।
मदन लाल जी को तुरंत पुलिस ने वहीँ पकड़ लिया।
कोर्ट में मदन लाल ढींगरा के शब्द
मदन लाल ढींगरा की सुनवाई Old Bailey में 23 जुलाई को हुई थी। इस सुनवाई में मदन लाल ढींगरा ने कोई वकील नहीं किया था बल्कि खुद ही केस लड़ा था।
इस सुनवाई में वो जीत नहीं पाए और उनको मौत की सजा हो गयी। उन्होंने कहा की मेरे द्वारा की गयी हत्या मेरे देश के लिए उसकी आजादी के लिए है।
उन्होंने ये भी बताया की डॉक्टर लाल्काका को मारने का उनका उद्देश्य नहीं था बस वो बीच में आ गए थे। उन्होंने कहा की ये मेरे लिए गर्व की बात है की , मै अपने देश के लिए मर रहा हूँ।
उन्होंने धमकी देते हुए कहा चाहो आज तुम्हारा समय है, पर याद रखना एक दिन हमारा भी समय आएगा। मदन लाल ढींगरा जी को 17 अगस्त 1909 को Pentonville Prison में फांसी पर चढ़ा दिया गया।
फांसी की सजा सुनाये जाने के पहले मदन लाल ढींगरा ने कुछ और बातें भी कहीं थीं जो बहुत कम जगह पर मिलती हैं।
उन्होंने कहा था की मै अपने द्वारा की गयी हत्या पर थोडा भी दुखी नहीं हूँ। मुझे गर्व है की मैंने अपने देश के लिए किया जो किया।
उन्होंने साफ़ कहा की मुझे नहीं लगता की किसी भी ब्रिटिश कोर्ट को या नियम को ये हक है की मुझे बंदी बनाये और सजा दे।
अगर कोई ब्रिटेन का आदमी किसी जर्मन को मार देता तो आप तो उसे देशभक्त कहते और मैंने वही किया अपने देश के लिए तो मुझे हत्यारा कहने वाले आप लोग कौन हो?
मदन लाल ढींगरा पहले भारतीय देशभक्त थे जिनको क्रांति के लिए ब्रिटेन में फांसी की सजा हुई थी।
कोर्ट द्वारा मदन लाल ढींगरा को मृत्यु दंड देना
जब ब्रिटेन की सरकार ने मदन लाल ढींगरा जी को फांसी की सजा सुनाई तो उन्होंने जज से कहा की आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने मुझे अपने देश के लिए मरने का अवसर दिया। मुझे गर्व है इस बात का।

मदन लाल ढींगरा के मृत्युदंड की देश में प्रतिक्रिया
जब मदन लाल ढींगरा जी ने Curzon Wyllie को मार दिया तो कुछ लोगो ने उन्हें अपराधी मानना शुरू कर दिया। जिसमे भारत के कुछ बड़े क्रान्तिकारी भी शामिल थे।
Curzon Wyllie की हत्या के पांचवे दिन ही एक सभा हुई, जिसमे भारत के बड़े राजनैतिक लोग आये थे।
उन सभी लोगो का कहना था की ये हत्या करने वाला अपराधी है, लेकिन वीर सावरकर जी डंटे रहे और उन्होंने कहा की मदन लाल ढींगरा एक क्रान्तिकारी और देशभक्त है।
मदन लाल ढींगरा की मौत के बाद अभिनव भारत सोसाइटी ने एक पोस्टकार्ड छापा, जिसमे मदन लाल ढींगरा को एक देशभक्त बताया गया।
वीर सावरकर जी के एक दोस्त वी . वी. एस . अय्यर ने उन्ल्लेख किया की मदन लाल ढींगरा द्वारा की गयी हत्या एक गर्व की बात है, और वो एक देशभक्त थे और आने देश के लिए कुर्बान हो गए।
उन्होंने वीर सावरकर जी की भी सराहना की क्योंकि उन्होंने अंत तक मदन लाल ढींगरा जी का साथ दिया।
भारत के ही कुछ बड़े नेता और ब्रिटेन के नेताओं ने ढींगरा की इस कृत्य के लिए निंदा की। और तो और सावरकर की भी निंदा की क्योंकि उन्होंने ढींगरा जी का साथ दिया था।
इन बड़े नेताओं में महात्मा गाँधी जी का नाम भी शामिल था।
महात्मा गांधीजी ने ढींगरा के कृत्य पर टिप्पणी करते हुए कहा था की-
मदन लाल ढींगरा ने जो किया वो बहुत गलत था।
क्या ब्रिटेन के लोग सभी जर्मन को मारेंगे या सिर्फ उनको जो उनके विरुद्ध लडाई कर रहे हैं, या वो ऐसे ही सभी जर्मन को मार देंगे चाहे वो उनका मेहमान हो।
उन्होंने आगे कहा की अगर ब्रिटिश सरकार चली गयी तो फिर राज कौन करेगा? ये हत्यारे लोग?
क्या दुश्मनी सिर्फ अंग्रेजो से है? क्या सभी भारतीय अच्छे हैं और सभी अंग्रेज ख़राब?
अगर ऐसा है तो पहले भारतीय राजाओं के खिलाफ भी क्यों आवाज़ उठती थी? और अगर ये हत्यारे राज करेंगे तो देश का क्या होगा?
मदन लाल ढींगरा के फांसी के बाद लन्दन के The Times ने लिखा की सुनवाई मे मदन लाल ढींगरा द्वारा लापरवाही दिखाई गयी इसीलिए उनको फांसी हुई।
उन्होंने अपने बचाव में कुछ नहीं कहा बस ख़ुशी-ख़ुशी फांसी पर लटक गए।
ब्रिटेन के ही कुछ लोगो द्वारा मदन लाल ढींगरा द्वारा किये गए इस काम की प्रशंसा की गयी। उनमे मुख्य रूप से थे David Lloyd George और Winston Churchill. इन लोगो ने ढींगरा को एक बहुत अच्छा मातृभक्त कहा।
मदन लाल ढींगरा के आखिरी शब्द
जब मदन लाल ढींगरा जी को फांसी देने ले जाया गया तो उन्होंने मरने से पहले कहा –
“मेरा मानना है कि विदेशी संगीनों द्वारा आयोजित एक राष्ट्र युद्ध की एक सतत स्थिति में है।
चूंकि खुली लड़ाई एक निहत्थे जाति के लिए असंभव है, इसलिए मैंने आश्चर्य से हमला किया। चूंकि मुझे बंदूकें देने से मना कर दिया गया था इसलिए मैंने अपनी पिस्तौल निकाली और गोली चला दी।
धन और बुद्धि में गरीब, मेरे जैसे बेटे के पास माँ को देने के लिए अपने खून के अलावा और कुछ नहीं है। और इसलिए मैंने उसकी वेदी पर बलि चढ़ाया है।
वर्तमान में भारत में केवल एक ही पाठ की आवश्यकता है कि कैसे मरना है, और इसे सिखाने का एकमात्र तरीका स्वयं मरना है।
ईश्वर से मेरी केवल यही प्रार्थना है कि मैं उसी माँ से फिर से जन्म लूं और जब तक उद्देश्य सफल न हो तब तक मैं उसी पवित्र कारण में फिर से मर सकूँ। वन्दे मातरम! (“मैं तेरी स्तुति करता हूँ माँ!”)”
source- https://en.wikipedia.org/wiki/Madan_Lal_Dhingra
और इसी के साथ मदन लाल ढींगरा, शहीद मदन लाल ढींगरा के नाम से हमेशा के लिए अमर हो गए।
मदन लाल ढींगरा के मृत्यु के बाद
फांसी देने के बाद ब्रिटिश सरकार ने मदन लाल ढींगरा के शरीर को हिन्दू रीती रिवाज से अंतिम संस्कार करने के लिए देने से मन कर दिया और दफना दिया।
उनके परिवार ने पहले ही उन्हें स्वीकार करने से मना कर दिया था, तो उनका ढींगरा जी के मर जाने के बाद भी दिल नहीं बदला।
सावरकर और उनके समूह ने उनके शारीर की मांग की पर उनको शरीर दिया नहीं गया।
काफी समय के बाद सन 1976 में जब शहीद उधम सिंह के अवशेष खोजे जा रहे थे, तब मदन लाल ढींगरा जी के भी अवशेष मिले जिन्हें भारत भेज दिया गया।

इस अवशेष को महाराष्ट्र के अकोला में एक जगह पर रखा गया और उस जगह का नाम इनके नाम पर ही रखा गया।
मदन लाल ढींगरा आज भी लोगो के लिए प्रेरणा हैं, उस वक़्त में भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद इनसे ही प्रेरित थे।
आज़ादी के बाद कुछ समूहों द्वारा मांग की गयी की इनके पुराने घर को म्यूजियम बनाया जाए, लेकिन मदन लाल ढींगरा जी के घर वालो ने उस घर को बेच दिया था और वो उसे म्यूजियम में बदलने के लिए तैयार नहीं थे।
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