HINDI KAHANIYAAN : MORAL STORIES IN HINDI ब्राहमण का खज़ाना (सुमेर की कहानियाँ) कहानी-9

ब्राहमण का खज़ाना

आज सुनाने जा रहा हूँ Hindi Kahaniya की एक कहानी जो की Moral Stories In Hindi से है।

राजा सूर्यभान के राज्य में एक ब्राहमण रहता था। उसका नाम रामजन था। वह अब बहुत बुड्ढा हो गया था और चारो धाम की यात्रा करना चाहता था। उसने अपने जीवन में कड़ी मेहनत करके एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएं इक्कठी की थीं।
वह तीर्थ पर इन मुद्राओं को नहीं ले जाना चाहता था। उसने उन मुद्राओं को थैली में भरकर अपने पडोसी रामधन सेठ को दे दिया। वह सेठ के पास जाकर बोला,”मित्र मै चारो धाम की यात्रा पर जा रहा हूँ। इस थैली को तुम अपने पास रखो। जब तक मै वापस नहीं आता हूँ। इसमें मेरे पुरे जीवन की कमाई है। मै जब तीर्थ से वापस आऊंगा तो इसे वापस ले लूँगा।”

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सेठजी ने आश्वासन दिया कि आप आराम से जाइये। जब आप वापस आयेंगे, तो इसे ऐसा ही पाएंगे, ये पूरी तरह से सुरक्षित है।
इसके बाद ब्राहमण रामजन सेठ को थैली देकर चला गया। वैसे सेठजी उतने भी अच्छे नहीं थे। जितना वो खुद को दिखाते थे। ब्राह्मण के जाने के बाद उन्होंने थैली को खोलकर देखा, तो उसमे एक हज़ार स्वर्ण मुद्राएं थीं। स्वर्ण मुद्राएं देखकर सेठजी का मन बदल गया। उन्होंने सोचा की घर आई लक्ष्मी को वापस नहीं जाने देंगे। उसने सोचा की वो अब ब्राहमण को ये मुद्राएं वापस नहीं करेगा।
थैली खोलते वक़्त उसमे एक छेद हो गया था।  उसने उसका भी प्रबंध कर रखा था। सेठ ने एक दर्जी से बिल्कुल वैसी ही थैली सिलवाई। उसमे एक हज़ार लोहे की मुद्राएं भर कर रख दी।

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जब ब्राहमण चारो धाम की यात्रा से वापस आया, तो वो सेठ के पास वापस गया और अपनी थैली मांगी। सेठजी ने वही थैली उसे दे दी। जिसमे लोहे की मुद्राएं भरी थीं। जब ब्राहमण ने घर लाकर उस थैली को खोला तो उसमे लोहे की मुद्राओं को देखकर पूरी बात समझ गया।
वो वापस सेठ के पास गया और कहा कि मैंने तुम्हे सोने की मुद्राएं दी थीं और तुमने मुझे लोहे की मुद्राएं वापस की हैं। मेरी मुद्राएं वापस करो नहीं तो मै राजा के पास शिकायत करूँगा। सेठ उसकी बात सुनकर गुस्सा हो गया, और बोला कि मुझे क्या पता की तुम्हारी थैली में क्या था। मैंने तो उसे खोला तक नहीं। जो तुमने दिया था, वही वापस किया हूँ।

जब ब्राहमण समझ गया की ये ऐसे नहीं मानेगा तो वो राजा के पास गया और पूरी बात बताई।  राजा सूर्यभान ने उस सेठ को बुलाया और पूरी बात जानी। उनको कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की क्या किया जाए। उन्होंने इस समस्या को सुलझाने का काम सुमेर को दे दिया।
सुमेर ने पूरी बात जानी और महाराज से कहा कि आप चिंता न करें मै जल्द ही पता कर लूँगा की सच क्या है। सुमेर ने ब्राहमण की थैली का बहुत अच्छे से निरीक्षण किया और पूरी बात समझ गए।
उन्होंने पूरे राज्य के दर्जियों को बुलाया और वो थैली दिखाते हुए कहा की जो बिल्कुल ऐसी थैली सिलकर देगा उसको एक स्वर्ण मुद्रा ईनाम दी जाएगी। राजा ने सभी को एक दिन का समय दिया और अगले दिन सभी दर्जियों को थैली के साथ बुलाया।
सुमेर ने सभी के थैली का निरीक्षण किया, लेकिन सभी थैली में कुछ न कुछ कमी थी, लेकिन एक थैली ऐसी थी जो बिल्कुल ब्राहमण के थैली जैसी थी। सुमेर ने उस दर्जी को बुलाया जिसने उस थैली को सिला था और पूछा कि क्या उसने ऐसी ही थैली सेठ के लिए सिली थी। पहले तो उसने इनकार कर दिया लेकिन जब उसे राजा के दंड का डर दिया गया तो उसने सारी बात उगल दी।
अगले दिन सेठ और ब्राहमण को दरबार में बुलाया गया और सुमेर ने कहा कि सेठ ने बेईमानी की है। पहले तो उसने मना कर दिया लेकिन फिर उस दर्जी को सामने देख कर समझ गया की उसकी चोरी पकड़ी जा चुकी है।
उसने अपनी गलती मान ली राजा ने आदेश दिया की अब तुम्हे पंद्रह सौ स्वर्ण मुद्राएं देनी पडेंगी। जिसमे से चौदह सौ मुद्राएं ब्राहमण रामजन को और सौ मुद्राएं दर्जी को दी जायेंगी पुरस्कार के रूप में।  ये फैसला सुनकर सेठ अपना सा मुह लेकर रह गया राजा ने सुमेर की इस बुद्धिमता की बहुत प्रशंसा की और कहा कि तुम जैसा तो मेरे जीवन में कोई हो ही नहीं सकता।

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