HINDI KAHANIYAAN : MORAL STORIES IN HINDI दान किसे? (सुमेर की कहानियाँ) कहानी-17

दान किसे? 

आज सुमेर की HINDI KAHANIYAAN में आप पढेंगे MORAL STORIES IN HINDI की KAHANI  दान किसे?

राजा सूर्यभान वीर और प्रजा का ख्याल रखने वाले थे। जिसकी वजह से उनकी प्रजा बहुत ख़ुशी से रहती थी। प्रजा धनी थी इसलिए राजा को कर भी अच्छा मिलता था। जिससे राजकोष भी खूब भरा था। एक दिन राजा का दरबार लगा था।
राजा ने लोगो से सलाह मांगी की मेरा राजकोष काफी भरा हुआ है मुझे उसका धन कहाँ खर्च करना चाहिए। लोगो ने कहा,” महाराज राज्य  में विद्यालय बनवाइए और प्रजा के पास जो कमी है वो पूरा कीजिये।”  राजा ने कहा,”ये सभी किया जा रहा है और फिर भी काफी धन बच रहा है।” राजगुरु ने कहा ,” महाराज कहा जाता है की धन यदि ज्यादा हो तो दान करना चाहिए। दान करने से धन बढ़ता है।”
राजा को ये बात अच्छी लगी लेकिन अब समस्या ये थी की दान किसे दिया जाए। तो राजगुरु ने कहा,” महाराज दान तो ब्राहमण को ही करना चाहिए क्योंकि वो बहुत ही संतोषी होते हैं।” राजा को ये बात भी सही लगी। राजा ने यह दान का काम सुमेर को दे दिया। सुमेर ने कहा,” महाराज दान तो उसे करना चाहिए जिसको उसकी ज़रुरत हो। ज़रूरी नहीं की ब्राहमण को ही किया जाए।”
इस बार राजा को सुमेर की बात सही नहीं लगी। राजा ने कहा,” जितना तुमसे कहा जाए उतना करो।” सुमेर ने राजा की बात मान ली। सुमेर ने राजा से धन ले कर एक घर बनवाया और उसके आगे लिखवा दिया ‘ये घर बहुत ही संतोषी ब्राहमण को दिया जायेगा जो ब्राहमण संतोषी होगा वही इस घर को पाने के लायक है।’

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राजा ने घर का निरीक्षण किया। राजा को भी ये बात अच्छी लगी की वो एक संतोषी ब्राहमण को दान देंगे। काफी दिन बीत गए लेकिन कोई भी उस घर को लेने के लिए नहीं आया। एक दिन एक ब्राहमण सुमेर के पास आया। ब्राहमण बोला,” मै बहुत ही संतोषी हूँ और मै इस घर को पाने के लायक हूँ। ये घर मुझे ही मिलना चाहिए।”  सुमेर ने उसकी बात सुनी और कहा,” यही बात आपको दरबार में कहनी होगी फिर राजा की मर्ज़ी से ये तुम्हे मिल जायेगा।”

ब्राहमण अगले दिन दरबार गया और यही बात कही। राजा ने बात सुनी  तो गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा,” अगर तुम संतोषी होते तो कभी भी घर मांगने नहीं आते। जो तुम्हारे पास है उसी मै संतोष करते। तुम तो बहुत बड़े लालची हो। मै ये घर तुम्हे नहीं दे सकता वरना मुझे हमेशा लगता रहेगा की मैंने गलत इंसान को दान किया है।” ये बात सुनकर वो ब्राहमण चुपचाप चला गया।

सुमेर में राजगुरु से कहा,”आपने तो कहा था कि हर ब्राहमण संतोषी होता है।” राजगुरु ये सुनकर गुस्सा हो गए लेकिन कर ही क्या सकते थे ?  चुपचाप बैठे रहे। राजा ने सुमेर से कहा,” इस तरह तो मै कभी दान नहीं कर पाउँगा। मुझे क्या करना चाहिए ?” सुमेर ने कहा,” महाराज जिसको घर की ज़रुरत है उसको आप घर दीजिये।”

इस बार राजा ने सुमेर की बात मान ली और गरीब लोगो को घर दान किया। उनके भोजन का प्रबंध किया। इस बार राजा खुश थे की उन्होंने उसको दान किया है जिसे उसकी ज़रुरत थी।दान करने की वजह से राजा की प्रजा और ख़ुशी से रहने लगे और इसी के साथ राजा का राजकोष भी और तेज़ी से बढ़ने लगा।

शिक्षा- संतोषी इंसान कभी किसी से कुछ नही मांगता।

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