HINDI KAHANIYA : MORAL STORIES IN HINDI बुरी संगति (मंत्री सुमेर की कहानियाँ-4)

नमस्कार! ये HINDI KAHANIYAAN पूरी तरह से काल्पनिक हैं। ये kahaniyaan शिक्षाप्रद (Moral stories in hindi) और हास्यास्पद (Funny stories in hindi) हैं।

राजा सूर्यभान के दरबार मे कई मंत्री थे, लेकिन उनमें सबसे बुद्धिमान सुमेर थें। जिससे राजा उन्हें बहुत मानते भी थे। उसी दरबार मे एक मंत्री था कैलाश। एक बार कोई बात हुई थी तो सुमेर ने कैलाश का मज़ाक उड़ाया था। जिससे कैलाश की भरे समाज मे बहुत बेज़्ज़ती हो गई थी। तब से कैलाश सुमेर से बहुत जलन करता था, और उसे मज़ा चखाना चाहता था।
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उसी दरबार मे सूर्यभान के राजगुरु को भी सुमेर ने कई बार बेज़्ज़त किया था। इसलिए वो भी सुमेर से खार खाये बैठा था। और ये तो सुना ही होगा कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। उसी तरह कैलाश और राजगुरु में भी खूब अच्छी मित्रता हो गयी। वो दोनों मिलकर सुमेर को सबक सिखाने का तरीका खोजने लगे।

वो जानते थे कि राजा सुमेर की ही बात मानते हैं और किसी पर विश्वास ही नही करते। तो उन्होंने सोचा कि सबसे पहले महाराज के मन मे सुमेर के लिए गुस्सा भरें तो ही कुछ फायदा होगा।

एक दिन जब राजदरबार खत्म हो गया। तो राजा को अकेले में देख कर राजगुरु उनके पास गए और कहने लगे महाराज वैसे तो सुमेर आपके सामने बहुत अच्छा बनने की कोशिश करता है खुद को अच्छा दिखाता है लेकिन पीठ पीछे कहता है कि महाराज कुछ भी नही हैं मेरे बिना अगर मैं ना रहूं तो वो कुछ नही कर पाएंगे। राजा ने उनकी बात सुनी तो सुमेर पर गुस्सा हो गए।
कुछ दिनों तक तो सीधे मुह बात तक नही की। जिसको देखकर राजगुरु और कैलाश बहुत खुश हुए, की उनका तरीका काम कर गया। जब सुमेर को लगा की महाराज उनसे नाराज़ हैं तो महाराज से पूछा महाराज कोई गलती हो गयी क्या? जो आप मुझसे नाराज़ हैं। कोई गुनाह हुआ हो तो बता दीजिए मैं आपसे माफी मांग लूंगा। और फिर भी आपको संतोष न हो तो सज़ा दे दीजियेगा।

महाराज ने ये सुनकर पूछा कि क्या तुम लोगो से कहते फिरते हो कि मैं तुम्हारे बिना कुछ भी नही हूँ? सुमेर समझ गया कि ये राजगुरु और कैलाश की चाल है। सुमेर ने कहा महाराज आज रात आप मेरे साथ एक जगह चलिएगा आपके सवाल का जवाब मिल जाएगा।महाराज मान गए।

रात को सुमेर और सूर्यभान भेष बदलकर राजगुरु के घर पहुंचे, और वहां छिप कर राजगुरु और कैलाश की बात सुनने लगे। कैलाश महाराज की खूब बुराई कर रहा था, लेकिन राजगुरु कुछ नही कह रहे थे न ही उसे रोका न ही उसे गलत कहा। राजा समझ गए कि राजगुरु गलत संगति में हैं। उन्होंने सुमेर से कहा राजगुरु तो अच्छे हैं बस गलत संगति का असर है उन्हें किसी तरह उससे दूर करो।सुमेर ने कहा जो आज्ञा महाराज।

इस बात को काफी दिन बीत गए। एक दिन सुमेर के पुत्र का जन्मदिन समारोह था। सुमेर ने सबको बुलाया कैलाश और राजगुरु को भी। सुमेर ने राजगुरु और कैलाश का खूब स्वागत किया। कुछ देर बाद सुमेर आया और राजगुरु से अकेले में मिलने को कहा और कहा कि वो उनको कुछ देना चाहता है।

राजगुरु सुमेर के साथ अकेले में गए काफी देर साथ बात की और कुछ दिए बिना वहां से चले गए। जब राजगुरु वहां से निकलकर कैलाश के पास पहुंचे तो सुमेर ने जल्दी से आकर उनसे कहा कि जो मैंने आपको दिया वो किसी को बताइयेगा मत न ही दिखायेगा। सुमेर के जाने के बाद कैलाश ने राजगुरु से पूछा कि उसने क्या दिया तो राजगुरु ने कहा की कुछ भी नही दिया। बहुत कहने पर भी राजगुरु ने कहा कि कुछ भी नही दिया। जिससे कैलाश सोचने लगा कि ऐसा दोस्त किस काम का जो अपनी बात अपने दोस्त से छिपाए और उसके बाद उनकी दोस्ती टूट गई।

इस बात से राजा बड़े खुश हुए और सुमेर से कहा तुम जैसा बुद्धिमान आज तक नही देखा।

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