best motivational story in hindi हौसले की उड़ान (part-1)

नमस्कार मैं कोई अच्छा लेखक नही हूँ बस आज वही लिखने जा रहा हूँ जो मेरी ज़िंदगी मे हुआ है।

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   शाम ढल रही थी सब घर लौट रहे थे। सूरज की लालिमा अब बस बादलो पर दिखाई दे रही थी। मैं भी अपनी गायों को लेकर लौट रहा था। वो मंद मंद हवा और उसमें कहीं दूर से आती मंदिर के घंटियों की आवाज़ मौसम को और भी खूबसूरत बना रही थी।

दिल चाहता था कि वक़्त यहीं रुक जाए और मैं इसी पल में खो जाऊं। जैसे पानी मे चीनी खो जाती है। लेकिन मेरे चाहने से क्या होगा? वक़्त तो नही रुकता न । मैन तेज़ी से कदम बढ़ाए और अपने घर की ओर चल दिया। लेकिन मन में वही ख्याल था जो मैं सोचना नही चाहता था।
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लेकिन मैं ही आखिर क्यों ऐसा क्यों हूँ? क्यों लोग मेरे साथ ही ऐसा करते हैं? क्या मेरी ज़िंदगी यही है? सच कहूं तो मुझे मेरे इस हुनर से ही नफरत हो गयी थी?
क्या ये भी कोई हुनर है की मैं किसी की भी तस्वीर बिल्कुल उसके जैसी ही बना देता हूँ। तो इसका यह मतलब तो नही न की हर शाम जब मैं थक हार कर घर पहुँचूं तो पूरा गांव मुझसे तस्वीर बनवाये।
इन्ही ख्यालो में खोए हुए मैं कब घर पहुंच गया मुझे पता ही नही चला। “कहाँ देर हो गयी आज जल्दी से खाना खा लो सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहें हैं।” माँ ने कहा। ” कितनी भोली है मेरी माँ ” मैंने सोचा।
खाना खाकर मैं बाहर आया और फिर लोग मुझसे अपनी तस्वीर बनवाने लगे। यह बात एक दिन की नही रोज़ की थी। और मैं हमेशा सोचता था की एक  दिन उस बड़ी सी बिल्डिंग में मैं भी जाकर काम करूंगा जो पहाड़ी के उस पार है।
पर क्या मेरा ये सपना कभी सच होगा? बहुत डर लगता था। गांव में पढ़ाई कर नही सकता था। दिन भर भैंस चराता और रात को लोगो के चित्र बनाता। बस मेरी ज़िंदगी इतनी ही थी।
एक दिन मैं जब उस ऊंची पहाड़ी पर बैठा उस ऊंची बिल्डिंग पर तेज़ चमकती लाइट को देख रहा था। तो दिल मे ख्याल आया क्यों न आज मैं घर ही न जाऊं । मैंने निश्चय कर लिया और चल दिया उस बिल्डिंग की तरफ। जो कि मेरे घर से 20 km दूर था।
मैं 3 घंटे चलने के बाद बिल्डिंग के सामने था। दोपहर का वक़्त था और धूप भी ज्यादा। मैं अंदर गया और काम की मांग की लेकिन शायद मेरी उम्र कम थी सिर्फ 14 साल और उन्होंने कहा कि 18 साल के होना तब आना।
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लेकिन 4 साल बाद क्या मेरी माँ रहेगी जिसकी तबियत इतनी खराब है। और मेरे पास इलाज के भी पैसे नही हैं। मैंने सोच लिया कि कोई काम किये बिना घर नही जाऊंगा। लेकिन पूरा दिन खोजने के बाद भी मुझे कहीं भी कोई भी काम न मिला।
शाम हो चुकी थी और शायद अब मुझे खाली हाथ घर लौटना था। मुझसे ये ना होगा। मुझे कुछ करना ही होगा लेकिन क्या? मुझे तो कोई काम भी नही आता न पढ़ा लिखा हूँ।
अचानक मुझे याद आया कि मैं लोगो के चित्र बना लेता हूँ । मैंने लोगो से अपना चित्र बनवाने के लिए कहा और उनसे मुझे कुछ पैसे मिल गए।
मैं खुशी खुशी घर चला गया और उस दिन समझ आया कि यदि मेरे मे कोई गुण बहुत अच्छा है तो मैं जितना उस गुण का प्रयोग करूँगा वो गुण उतना अच्छा बनता चला जाएगा।
आज मेरी उम्र 22 साल है और आज उसी बिल्डिंग में मेरी खुद की कंपनी है लोगो के चित्र बनाने की जो कि मैंने सड़क से शुरू की थी।

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